जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
भूमिका
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोय,
जा तन की झाईं परे, स्याम हरित द्युति होय।
जा तन की झाईं परे, स्याम हरित द्युति होय।
इस सुप्रसिद्ध दोहे के लेखक महाकवि बिहारी केवल एक रचना 'बिहारी सतसई' के आधार पर हिन्दी साहित्य में सदा के लिए अमर हो गये। सतसई में मात्र सात सौ दोहे हैं, जो बहुत बड़ी संख्या नहीं है, और इनमें से अनेक आज की साहित्य की दुनिया में लोकप्रिय हैं। इससे कवि की अपार महत्ता का पता चलता है।
कविवर बिहारीलाल मुख्यतः शृंगार के कवि के रूप में विख्यात हैं। उनका समय मुगल बादशाह जहांगीर तथा विशेष रूप से उनके बाद हुए शाहजहाँ का राज्यकाल है जिनके साथ वे जुड़े भी रहे। गद्दी पर बैठने से पहले शाहजहाँ के साथ उनका अच्छा संबंध रहा जो उनके बादशाह बनने पर स्वाभाविक रूप से कम हो गया।
हिन्दी के कवियों में केशवदास उनसे पूर्व हुए कवि थे और अब्दुर्रहीम खानखाना, प्रसिद्ध संस्कृत कवि पंडितराज जगन्नाथ, दूलह, सुन्दर आदि समकालीन थे। बिहारीलाल को राजदरबार में प्रवेश प्राप्त हो गया था और उनकी आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी हो गई थी। लेकिन मुगल दरबार की हलचलों और शाहजादों की आपसी लड़ाइयों के कारण उन्हें शाहजहाँ का आश्रय छोड़कर जयपुर के राजा की शरण में जाना पड़ा था। जोधपुर के महाराज जसवन्त सिंह भी उनसे बहुत प्रसन्न थे और उन्हें नियमित रूप से वृत्ति प्रदान करते थे।
प्राचीन कवियों के जीवन पर उपन्यास लिखना कठिन काम है क्योंकि उनके संबंध में अधिक सामग्री नहीं मिलती और उपलब्ध थोड़ी-बहुत जानकारी के आधार पर काफी कुछ कल्पना का सहारा लेकर ही काम चलाना पड़ता है। लेखक रांगेय राघव स्वयं इतिहास के अच्छे विद्वान रहे हैं और उन्होंने बड़ी योग्यतापूर्वक कविवर बिहारीलाल को तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं के बीच प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। उस समय के राजा-महाराजा और मुगल बादशाह विद्वानों तथा कवियों का विशेष स्वागत करते थे और उन्हें सम्मान तथा संपत्ति इत्यादि देकर समाज में प्रतिष्ठित नागरिक बना देने की भूमिका निभाते थे। बिहारी को भी यह सब प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं और इनके बहुत से संकेत उनके कवित्व में ही प्राप्त होते हैं। उदाहरण के रूप में, उनका यह दोहा-
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल
अली कली ही स्यों बँध्यो, आगे कौन हवाल।
अली कली ही स्यों बँध्यो, आगे कौन हवाल।
उपन्यासकार ने इस तथा कवि के अन्य अनेक दोहों को उनके साथ घटी अनेक घटनाओं के साथ जोड़ने का सफल प्रयत्न किया है। जैसे, उपर्युक्त दोहा उन्होंने आमेर के राजा को सुन्दरियों के साथ विलास करना छोड़कर राजकाज में ध्यान दिलाने के लिए प्रयुक्त किया है। इन विवरणों में उस समय की राजनीतिक स्थिति तो आती ही है जो हर दिन बदलती रहती थी। ये सब विवरण भी बहुत आकर्षक और प्रभावशाली बन पड़े हैं।
ऐतिहासिक व्यक्तियों पर उपन्यास लिखना कठिन काम भले ही हो, यह एक बहुत आवश्यक कार्य भी है। कारण, पाठक की रुचि सपाट ढंग से लिखी जीवनियों में उतनी नहीं हो सकती, जितनी उसे कथा रूप में पढ़ने में हो सकती है। अंग्रेजी में इस प्रकार के प्रयोग बहुत हुए हैं परंतु हिन्दी में कम हुए हैं। रांगेय राघव सम्भवतः ऐसे व्यक्तियों पर उपन्यास लिखने वाले प्रथम लेखक थे, जिनकी ओर लेखकों का ध्यान प्रायः कम ही जाता है। उन्होंने इस उपन्यास में बहुत कम पृष्ठों में कविवर बिहारी और उस समय के समाज, जीवन और राजनीति की बहुत रोचक तस्वीर खींच दी है।
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